हे कृष्ण! (मैं) न तो विजय प्राप्त करना चाहता हूँ, और न राज्य तथा उन सुखों को । हे गोविन्द ! हमें (इस तरह से प्राप्त किए गए) राज्य से, भोगों और जीवन से भी भला क्या लाभ है ? जिनके लिए इस राज्य, भोगों तथा सुखों की प्राप्ति की हमें आकाङ्क्षा है, वे सब तो अपना सर्वस्व, अपने प्राणों (की आशा) को भी त्यागकर यहाँ युद्ध में खड़े हैं।(गीता,1.32)
प्रश्न जस का तस है । जहाँ अर्जुन युद्ध भूमि में यह प्रश्न श्रीकृष्ण से कर रहे थे, वहीँ मैं भी आज एक बार इस श्लोक के अर्थों पे जोर देने लगा | महा उपनिषद में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा की गयी है जो कि भारतीय संसद के प्रवेशद्वार पर भी लिखा हुआ है | इसका अर्थ है, ‘ पूरा विश्व या धरा हमारा परिवार है’| मैं इससे पूरी तरीके से सहमत हूँ | लेकिन जब कमोबेश पूरा विश्व भूखमरी, युद्ध, अपराधग्रस्त , भय से त्रस्त है तो हम कैसे सुखी रह सकते हैं ?
आज भी भाई- भाई में युद्ध जारी है| धृतराष्ट्र के तरह कई भारतीयों का पुत्र मोह जारी है | द्रौपदी का चीरहरण अब भी जारी है | पितामह आज भी मौन हैं | कर्ण को मिलाकर युद्ध जीतने की कोशिश चल रही है तो युधिष्ठिर भी अब अर्धसत्य बोलने में माहिर हो गए हैं क्योंकि जीतना तो उन्हें तब भी था अब भी है | संजय की भूमिका वाले मीडिया की दृष्टि तो और पैनी हो गयी है, हां नारदजी की विशेषता को उन्होंने ज्यादा विकसित कर लिया है | अब अर्जुन बेचारा कुछ ज्यादा ही परेशान हो गया है क्योंकि श्रीकृष्ण मिल नहीं रहें हैं, वह युद्ध करे या न करे | करे तो किससे करे सत्ता के लिए अधीर दुर्योधन से, कि दुःशासन शैतानों – हैवानों से, कि कल्किअपराधों से, भ्रस्टाचारों से,सामाजिक बुराईयों से या छद्म मीडिया से और प्रश्न जस का तस है |
very nice
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Nice
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Sahi h..good initiative
Need more comparative complicative decorative sarcastically ambiguous specifications.cz it’s hindi
The beauty of hindi. ..
Will come with experience.
All the best….
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nice
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Very well written according to my understanding.
Gud Luck!
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Nice
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